प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहाससरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-2 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 5
भारत की ताम्रपाषाण युगीन संस्कृति
(Chalcolithic Cultures of India)
प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
अथवा
भारत की ताम्रपाषाणिक संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का भौगोलिक विस्तार बताइये।
अथवा
भारत की ताम्रपाषाणिक संस्कृतियों पर एक विस्तृत लेख लिखिये।
अथवा
ताम्रपाषाणकालीन संस्कृति पर एक निबंध लिखिए।
सम्बन्धित लघु उत्तरीय प्रश्न
1. ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
2. ताम्रपाषाणिक संस्कृति का भौगोलिक विस्तार बताइए।
3. ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
4. ताम्रपाषाणिक संस्कृति की शवाधान प्रक्रिया को समझाइए।
5. ताम्रपाषाण युगीन कृषि व्यवस्था का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
उत्तर-
सैन्धव सभ्यता नगरीय सभ्यता थी। अतः इसके पतन के साथ मुख्यतः नगरीय तत्वों, जैसे- नगर नियोजन, भव्य भवन, भार माप के पैमानों, लिपि आदि का ही अन्त नहीं हुआ बल्कि ग्राम्य जीवन से सम्बन्धित तत्व, जैसे खेत जोतने की पद्धति, भार ढोने के साधन (बैलगाड़ियों), लोक विश्वास, प्रथायें आदि अवशिष्ट रहीं। परिणामस्वरूप हमें भारत में सिन्धु क्षेत्र के बाहर अनेक विकसित ग्रामीण संस्कृतियों के दर्शन होते हैं। इन्हें ताम्रपाषाणिक (Chalcholithic ) कहा गया है क्योंकि इन संस्कृतियों के लोग पत्थर के साथ-साथ ताँबे की वस्तुओं का भी उपयोग करते थे। वे मुख्यतः ग्रामीण समुदाय के लोग थे जिनका प्रमुख उद्यम कृषि एवं पशुपालन था। इन्हें पशुचारी एवं कृषक समुदाय (Pastoral and Agrarian Community) कहा जा सकता है। वे जिन क्षेत्रों में निवास करते थे वहाँ पर्वतीय भूमि एवं नदियाँ थीं। ग्रामीण एवं पशुचारी समाज की बस्तियाँ दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान, मध्य प्रदेश के पश्चिमी भाग, पश्चिमी महाराष्ट्र तथा दक्षिणी-पूर्वी भागों में दिखाई देती हैं। इनके निवासियों द्वारा प्रयुक्त विशिष्ट प्रकार के मृद्भाण्डों के आधार पर इन्हें जाना जाता है।
दक्षिणी-पूर्वी राजस्थान में ताम्रपाषाणिक संस्कृति के प्रमुख उत्खनित स्थल हैं - अहाड़, गिलुन्ड तथा वालाथल। अहाड़ ( उदयपुर जिले में स्थित ) तथा गिलन्ड (चित्तौड़ में स्थित ) चूँकि वनास नदी घाटी में स्थित है इस कारण इस संस्कृति को अहाड़ अथवा वनास संस्कृति भी कहा जाता है। अहाड़ संस्कृति का एक अन्य स्थल वालाथल भी उदयपुर जिले में ही स्थित है। अहाड़ तथा गिलुन्ड के उत्खन्न से बड़ी बस्तियों के प्रमाण मिलते हैं। इस संस्कृति के लोग अपने मकान गीली मिट्टी (गारा) तथा पत्थर के बनाते थे। नींव पत्थरों से भरी जाती थी तथा कभी-कभी दीवारों के निर्माण में कच्ची ईंटों का भी प्रयोग होता था। गिलुन्ड में मकानों के निर्माण में पक्की ईंटों के प्रयोग के साक्ष्य भी मिले हैं। कुछ मकानों से चूल्हे के अवशेष मिलते हैं। दीवारों के निर्माण में कभी-कभी लकड़ी और बाँस का प्रयोग भी किया जाता था तथा उनके ऊपर छप्पर भी बनाये जाते थे। गिलुन्ड की खुदाई में स्तम्भ पर्त (Post-holes) के प्रमाण भी मिले हैं। अहाड़ संस्कृति के लोग मूलतः कृषक एवं पशुपालक थे। वे गेहूँ, जौ, धान, चना, मूँग आदि की खेती करते तथा गाय, बैल, भेड़, बकरी, सूअर, भैंस आदि पशुओं को पालते थे। हिरण आदि पशुओं का शिकार भी किया जाता था। संस्कृति के लोग अपने मृद्भाण्डचाक पर बनाते थे। कई प्रकार के भाण्ड मिलते हैं। मुख्य भाण्ड काले एवं लाल रंग के हैं और कुछ पर सफेद ज्यामितीय आकृतियाँ बनाई गयी हैं। इस संस्कृति की विशिष्ट पात्र परम्परा काली तथा लाल ही है। इसके अतिरिक्त कुछ दूसरे प्रकार के मृद्भाण्ड भी हैं जिनका द्वितीय सहस्त्राब्दी की ग्रामीण की संस्कृतियों में व्यापक रूप से प्रचलन था। अहाड़ से पाषाण उपकरणों के स्थान पर ताम्र उपकरण, सपाट कुल्हाड़ी, चूड़ी, चादरें आदि मिलते हैं। इसका एक नाम ताम्बवती (ताँबा वाला स्थान) भी मिलता है जिससे सूचित होता है कि यहाँ ताँबा बहुतायत मात्रा में उपलब्ध था। यहाँ के निवासी ताँबे को अपने घरों में पिघलाकर मनचाही वस्तुयें तैयार करने में निपुण थे। सम्भव है ये अपने द्वारा तैयार ताम्र उपकरणों का पास-पड़ोस में निर्यात भी करते रहे हों। तीन हजार ईसा पूर्व में राजस्थान ताँबे का काम करने वाले शिल्पियों का प्रमुख केन्द्र बन गया था। ताँबा खेती की खानों से प्राप्त किया जाता था। इसी के पास गणेश्वर नामक पुरास्थल है जिसकी खुदाई में बहुसंख्यक ताँबे के उपकरण मिलते हैं। अहाड़ संस्कृति का कालक्रम ई.पू. 2500-1500 के बीच निर्धारित किया गया है।
ताम्रपाषाण का दूसरा क्षेत्र मालवा (मध्य प्रदेश) है जो प्रमुख उत्खनित स्थल है। कायथा (उज्जैन), पूरण, नवदा टोली तथा माहेश्वर (खरगोना जिला) इसके अन्तर्गत आते हैं। कायथा में उत्खनन कार्य वी. ए. वाकाणकर ने करवाया था। यहाँ से तीन संस्कृतियों के साक्ष्य मिलते हैं - कायथा, अहाड़ तथा मालवा। मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का प्रतिनिधि स्थल नवदा टोली है। यह सबसे विस्तृत स्थल है जिसका उत्खनन एच. डी. संकालिया द्वारा करवाया गया है। ताम्रपाषाणिक संस्कृति के सबसे अधिक स्थल पश्चिमी महाराष्ट्र में मिलते हैं जिनका उत्खनन कर अनेक सामग्रियाँ प्रकाशित की गयी हैं। इनमें जोरवे, नेवासा, दायमाबाद ( अहमदनगर जिला ), चन्दौली, सोनगाँव, इनामगाँव (पुणे जिला) तथा नासिक प्रमुख हैं। जोरवे संस्कृति के लोग एक विशिष्ट प्रकार के मृद्भाण्ड चाक पर तैयार करते थे जिन पर लाल रंग का लेप लगाया गया है तथा काली चित्रकारियाँ हैं। इनमें टोटीदार जलपात्र एवं गोड़ीदार कटोरा प्रमुख है। इनामगाँव से नारी तथा वृषभ की मृण्मूर्तियाँ मिलती हैं जिनका समीकरण मातादेवी से किया जा सकता है।
ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार पश्चिमी बंगाल के वीरभूमि, वर्दवान, मिदनापुर आदि में दिखाई देता है। यहाँ के प्रमुख उत्खनित स्थल पाण्डुराजार, ढिविमहिशाल है। यहाँ से मुख्यतः चावल की खेती किये जाने के प्रमाण मिलते हैं। अभी इलाहाबाद के समीप झूसी हवेलियाँ ग्राम की खुदाई इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास विभाग द्वारा हुयी है। पहले चरण में लोगों को लोहे की जानकारी जबकि दूसरे चरण में उन्हें लोहे का ज्ञान हो गया था। प्रो. पी. डी. मिश्र के अनुसार यहाँ ताम्रपाषाणिक संस्कृति के दो चरण परिलक्षित हुए थे। जितने बड़े पैमाने पर यहाँ पर ताम्रपाषाण काल के प्रमाण मिल रहे हैं उनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि यहाँ काफी बड़े क्षेत्र में लोगों की आबादी थी। इस संस्कृति का काल ई. पू. 1500-700 बताया है। दक्षिण भारत में ताम्रपाषाणिक संस्कृति के प्रसार के प्रमाण मिले हैं। कई स्थल कृष्णा तथा वृंगभद्रा के बीच दोआब प्रदेश में स्थित हैं, जैसे ब्रह्मगिरि, मास्की पिक्कली होल, संकन- कल्लू, नागार्जुनकोंड आदि। इन संस्कृतियों को सामान्यतः ई.पू. 2300-900 के बीच माना जाता है।
इस प्रकार ताम्रपाषाणिक संस्कृति का वितरण सिन्धु क्षेत्र के बाहर भारतीय भू-भाग के अत्यन्त विस्तृत क्षेत्र में मिलता है। इनके कुछ समान अभिलक्षण दिखाई देते हैं, जैसे- सभी ग्रामीण थे, इनके निवासियों का मुख्य उद्यम कृषि एवं पशुपालन था। वे अपने मकान मिट्टी के मारे घास-फूस, बाँस-बल्ली आदि की सहायता से बनाते थे। अहाड़ में पत्थर के घरों तथा गिलुण्ड में पकी ईंटों के साक्ष्य मिलते हैं। मकान प्रायः आयताकार वर्गाकार, गोलाकार बनते थे। इनामगाँव से मिली मिट्टी की नारी मूर्तियों से पता चलता है कि संभवतः वे देवी की पूजा करते थे। राजस्थान और मालवा क्षेत्र में वृषभ मूर्तियाँ मिली हैं। इनसे सूचित होता है कि इसे भी धार्मिक मान्यता प्राप्त थी। ई.पू. 2000 से इन संस्कृतियों में काले और लाल रंग के मृद्भाण्डों का निर्माण व्यापक रूप से होने लगा था। मालवा संस्कृतियों के काले रंग से चित्रित लाल रंग के मृद्भाण्ड सर्वोत्कृष्ट माने जाते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य प्रकार के भाण्ड भी मिलते हैं। प्रमुख पात्रों में टोंटीदार एवं गोड़ीदार लोटे, कटोरे, थालियों आदि हैं। बर्तन चाक पर बनाये जाते थे। राजस्थान के स्थलों से विकसित ताम्र धातु के उद्योग का पता चलता है। अन्य स्थलों के लोग पत्थर के छोटे-छोटे उपकरणों एवं अस्त्रों का प्रयोग करते थे। कुछ स्थानों पर ताम्र उपकरण भी मिलते हैं। दैमाबाद से कांसे के उपकरण प्राप्त होते हैं। कुछ विद्वान दैमाबाद संस्कृति पर सैन्धव प्रभाव मानते हैं। यहाँ से बस्ती के दुर्गीकरण एवं परिणा से आवृत्त होने के भी साक्ष्य मिले हैं। ताम्रपाषाण काल के निवासी पत्थर तथा ताँबे के उपकरण बनाने में निपुण लगते हैं। मालवा तथा जोरवे संस्कृति के लोग वस्त्रों की कताई-बुनाई भी करते थे। वे अपने मृतकों की अस्थि को कलश में रखकर घरों के भीतर गाड़ते थे। तथा उनके साथ दैनिक उपयोग की कुछ वस्तुयें भी रखते थे इससे परलौकिक जीवन में आस्था सूचित होती है।
भारत के मध्य तथा पश्चिमी क्षेत्रों में ताम्रपाषाणिक संस्कृतियाँ ई.पू. 1200 तक विद्यमान रहीं जबकि जोरवे संस्कृति (महाराष्ट्र) सातवीं शती ईसा पूर्व तक अस्तित्व में रही। ऊपरी गंगाघाटी तथा गंगा-यमुना के दोआब वाले प्रदेश के विभिन्न स्थलों से एक विशिष्ट प्रकार के बर्तन मिलते हैं जिन्हें गेरूवर्णी (गेरिक) मृद्भाण्ड (Ochre Coloured Pottery : O.C.P) कहा जाता है। अनेक ताम्रनिधियाँ भी पायी जाती हैं। गंगा-यमुना दोआब से बड़ी ताम्रनिधियाँ पायी जाती हैं। इनमे दो धारवाली कुल्हड़ियाँ, हार्पून, फरसे, भाले, दुसिंगी तलवार आदि शामिल हैं। कुछ आकृतियाँ मनुष्यों से मिलती-जुलती हैं। अधिकांश पुराविद् गैरिक मृद्भाण्डों तथा ताम्रनिधियों को एक ही संस्कृति से सम्बद्ध करते हैं। इसका काल ई.पू. 2000-1500 सामान्यतः स्वीकार किया. जाता है। इसके बाद की पात्र परम्परा 'चित्रित धूसर (Painted Grey Ware) की है जिसका सम्बन्ध लोहे से जोड़ा जाता है।
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- प्रश्न- पुरातत्व क्या है? इसकी विषय-वस्तु का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व का मानविकी तथा अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व विज्ञान के स्वरूप या प्रकृति पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'पुरातत्व के अभाव में इतिहास अपंग है। इस कथन को समझाइए।
- प्रश्न- इतिहास का पुरातत्व शस्त्र के साथ सम्बन्धों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- भारत में पुरातत्व पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पुरातत्व सामग्री के क्षेत्रों का विश्लेषण अध्ययन कीजिये।
- प्रश्न- भारत के पुरातत्व के ह्रास होने के क्या कारण हैं?
- प्रश्न- प्राचीन इतिहास की संरचना में पुरातात्विक स्रोतों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में पुरातत्व का महत्व बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- स्तम्भ लेख के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- स्मारकों से प्राचीन भारतीय इतिहास की क्या जानकारी प्रात होती है?
- प्रश्न- पुरातत्व के उद्देश्यों से अवगत कराइये।
- प्रश्न- पुरातत्व के विकास के विषय में बताइये।
- प्रश्न- पुरातात्विक विज्ञान के विषय में बताइये।
- प्रश्न- ऑगस्टस पिट, विलियम फ्लिंडर्स पेट्री व सर मोर्टिमर व्हीलर के विषय में बताइये।
- प्रश्न- उत्खनन के विभिन्न सिद्धान्तों तथा प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- पुरातत्व में ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज उत्खननों के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- डेटिंग मुख्य रूप से उत्खनन के बाद की जाती है, क्यों। कारणों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- डेटिंग (Dating) क्या है? विस्तृत रूप से बताइये।
- प्रश्न- कार्बन-14 की सीमाओं को बताइये।
- प्रश्न- उत्खनन व विश्लेषण (पुरातत्व के अंग) के विषय में बताइये।
- प्रश्न- रिमोट सेंसिंग, Lidar लेजर अल्टीमीटर के विषय में बताइये।
- प्रश्न- लम्बवत् और क्षैतिज उत्खनन में पारस्परिक सम्बन्धों को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- क्षैतिज उत्खनन के लाभों एवं हानियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- निम्न पुरापाषाण कालीन संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर पुरापाषाण कालीन संस्कृति के विकास का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- भारत की मध्यपाषाणिक संस्कृति पर एक वृहद लेख लिखिए।
- प्रश्न- मध्यपाषाण काल की संस्कृति का महत्व पूर्ववर्ती संस्कृतियों से अधिक है? विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारत में नवपाषाण कालीन संस्कृति के विस्तार का वर्णन कीजिये।
- प्रश्न- भारतीय पाषाणिक संस्कृति को कितने कालों में विभाजित किया गया है?
- प्रश्न- पुरापाषाण काल पर एक लघु लेख लिखिए।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन मृद्भाण्डों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- पूर्व पाषाण काल के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
- प्रश्न- पुरापाषाण कालीन शवाशेष पद्धति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मध्यपाषाण काल से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- मध्यपाषाण कालीन संस्कृति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।।
- प्रश्न- मध्यपाषाणकालीन संस्कृति का विस्तार या प्रसार क्षेत्र स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र के मध्यपाषाणिक उपकरणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गंगा घाटी की मध्यपाषाण कालीन संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- नवपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- विन्ध्य क्षेत्र की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- दक्षिण भारत की नवपाषाण कालीन संस्कृति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- मध्य गंगा घाटी की नवपाषाण कालीन संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति से आप क्या समझते हैं? भारत में इसके विस्तार का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- जोर्वे-ताम्रपाषाणिक संस्कृति की विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति का विस्तार से वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आहार संस्कृति का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मालवा की ताम्रपाषाणिक संस्कृति पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जोर्वे संस्कृति की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के औजार क्या थे?
- प्रश्न- ताम्रपाषाणिक संस्कृति के महत्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता / हड़प्पा सभ्यता के नामकरण और उसके भौगोलिक विस्तार की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता की नगर योजना का विस्तृत वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- हड़प्पा सभ्यता के नगरों के नगर- विन्यास पर विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिन्धु घाटी के लोगों की शारीरिक विशेषताओं का संक्षिप्त मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- पाषाण प्रौद्योगिकी पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के सामाजिक संगठन पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता के कला और धर्म पर टिप्पणी कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता के व्यापार का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सिंधु सभ्यता की लिपि पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- सिन्धु सभ्यता के पतन के कारणों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- लौह उत्पत्ति के सम्बन्ध में पुरैतिहासिक व ऐतिहासिक काल के विचारों से अवगत कराइये?
- प्रश्न- लोहे की उत्पत्ति (भारत में) के विषय में विभिन्न चर्चाओं से अवगत कराइये।
- प्रश्न- "ताम्र की अपेक्षा, लोहे की महत्ता उसकी कठोरता न होकर उसकी प्रचुरता में है" कथन को समझाइये।
- प्रश्न- महापाषाण संस्कृति के विषय में आप क्या जानते हैं? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- लौह युग की भारत में प्राचीनता से अवगत कराइये।
- प्रश्न- बलूचिस्तान में लौह की उत्पत्ति से सम्बन्धित मतों से अवगत कराइये?
- प्रश्न- भारत में लौह-प्रयोक्ता संस्कृति पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्राचीन मृद्भाण्ड परम्परा से आप क्या समझते हैं? गैरिक मृद्भाण्ड (OCP) संस्कृति का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- चित्रित धूसर मृद्भाण्ड (PGW) के विषय में विस्तार से समझाइए।
- प्रश्न- उत्तरी काले चमकदार मृद्भाण्ड (NBPW) के विषय में संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- एन. बी. पी. मृद्भाण्ड संस्कृति का कालानुक्रम बताइए।
- प्रश्न- मालवा की मृद्भाण्ड परम्परा के विषय में बताइए।
- प्रश्न- पी. जी. डब्ल्यू. मृद्भाण्ड के विषय में एक लघु लेख लिखिये।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में प्रयुक्त लिपियों के प्रकार तथा नाम बताइए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन ब्राह्मी लिपि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत की प्रमुख खरोष्ठी तथा ब्राह्मी लिपियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अक्षरों की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अशोक के अभिलेख की लिपि बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास की संरचना में अभिलेखों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- अभिलेख किसे कहते हैं? और प्रालेख से किस प्रकार भिन्न हैं?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय अभिलेखों से सामाजिक जीवन पर क्या प्रकाश पड़ता है?
- प्रश्न- अशोक के स्तम्भ लेखों के विषय में बताइये।
- प्रश्न- अशोक के रूमेन्देई स्तम्भ लेख का सार बताइए।
- प्रश्न- अभिलेख के प्रकार बताइए।
- प्रश्न- समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति के विषय में बताइए।
- प्रश्न- जूनागढ़ अभिलेख से किस राजा के विषय में जानकारी मिलती है उसके विषय में आप सूक्ष्म में बताइए।
- प्रश्न- मुद्रा बनाने की रीतियों का उल्लेख करते हुए उनकी वैज्ञानिकता को सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- भारत में मुद्रा की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारत में मुद्रा निर्माण की साँचा विधि का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मुद्रा निर्माण की ठप्पा विधि का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्कों) की मुख्य विशेषताओं एवं तिथिक्रम का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मौर्यकालीन सिक्कों की विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- आहत मुद्राओं (पंचमार्क सिक्के) से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- आहत सिक्कों के प्रकार बताइये।
- प्रश्न- पंचमार्क सिक्कों का महत्व बताइए।
- प्रश्न- कुषाणकालीन सिक्कों के इतिहास का विस्तृत विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय यूनानी सिक्कों की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- कुषाण कालीन सिक्कों के उद्भव एवं प्राचीनता को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन ताम्र सिक्कों पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- उत्तर गुप्तकालीन मुद्रा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- समुद्रगुप्त के स्वर्ण सिक्कों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्त सिक्कों की बनावट पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- गुप्तकालीन सिक्कों का ऐतिहासिक महत्व बताइए।
- प्रश्न- इतिहास के अध्ययन हेतु अभिलेख अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में सिक्कों के महत्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन सिक्कों से शासकों की धार्मिक अभिरुचियों का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त होता है?
- प्रश्न- हड़प्पा की मुद्राओं के महत्व का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन में अभिलेखों का क्या महत्व है?
- प्रश्न- प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत के रूप में सिक्कों का महत्व बताइए।